इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गणतंत्र के खूबसूरत 75 वर्षों में अपने निर्भीक फैसलों से आम आदमी का यह भरोसा बारंबार मजबूत किया है कि उनकी आवाज किसी सूरत दबेगी नहीं। यह बुलंद थी...बुलंद ही रहेगी। वो मौका चाहे इंदिरा गांधी के जमाने में लगे आपातकाल का हो या फिर सीएए-एनआरसी कानूनों के खिलाफ सड़क पर उतरे लोगों के उत्पीड़न का, कोर्ट ने सांविधानिक मूल्यों की हरदम रक्षा की है।
आपातकाल में...
समाजवादी नेता राजनारायण की चुनाव याचिका पर न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का निर्वाचन खारिज करके इतिहास रचा तो 27 जून 1975 को आपातकाल लगाने के बाद प्रतिद्वंद्वी राजनेताओं को मीसा कानून के तहत गिरफ्तार करने पर भी सरकार को मुंह की खानी पड़ी। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश केबी अस्थाना की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस पर रोक लगाई। यह याचिका भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी ने दाखिल की थी।
कल्याण सरकार की बर्खास्तगी पर रोक
23 फरवरी 1998...कल्याण सरकार को राज्यपाल रोमेश भंडारी ने बर्खास्त करके रातों-रात लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी के जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी। इसके खिलाफ भाजपा नेता नरेंद्र सिंह गौर की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति वीरेंद्र दीक्षित व न्यायमूर्ति डीके सेठ की खंडपीठ ने बर्खास्तगी पर रोक लगा दी। हालांकि, राज्यपाल को बहुमत परखने की छूट भी दी गई।
सबको शिक्षा...एक समान
न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की एकल पीठ ने अगस्त 2015 को सुनाए फैसले में कहा था, अधिकारियों, नेताओं और जजों के बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए। निगम, अर्धसरकारी संस्थानों या अन्य कोई भी जो राज्य के खजाने से वेतन उठा रहा हो, उनके बच्चों को भी सरकारी स्कूल में पढ़ना अनिवार्य करें। कोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश दिया था कि जो कोई इसका पालन नहीं करता, उससे फीस वसूली जाए। प्रमोशन और इंक्रीमेंट भी रोक दिया जाए। हालांकि, वृहद पीठ ने फैसला उलट दिया।
जातीय राजनीतिक रैलियों पर रोक
11 जुलाई, 2013 को न्यायमूर्ति उमानाथ सिंह एवं न्यायमूर्ति महेंद्र दयाल की खंडपीठ ने यूपी में जातीय आधार पर होने वाली राजनीतिक रैलियों पर रोक लगा दी थी। इस ऐतिहासिक फैसले के पीछे जातीय गोलबंदी के प्रयासों पर नकेल कसना था।
असहमति लोकतंत्र की पहचान
29 दिसंबर 2020... न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने यूपी में जंगलराज बताने वाली फेसबुक टिप्पणी को लेकर दर्ज मामले में कानपुर देहात के यशवंत सिंह की याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि सरकार की नीतियों से असहमति लोकतंत्र की पहचान है। याची को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।
स्वतंत्रता को सांस लेने दीजिए...
19 जनवरी 2021... न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की एकल पीठ ने विशेष विवाह अधिनियम के तहत दो धर्मों के युगलों के विवाह पंजीकरण से पहले जारी होने वाले नोटिस को निजता का हनन माना। कहा, स्वतंत्रता को सांस लेने दीजिए। उप्र विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 के अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिका में कोर्ट ने धर्म परिवर्तन कानून के दुरुपयोग की आशंकाओं पर चिंता व्यक्त की थी।
हिंसा आरोपियों के पोस्टर...निजता पर हमला
सीएए-एनआरसी के खिलाफ लखनऊ में हुई हिंसा में कथित रूप से शामिल 57 लोगों से 88 लाख रुपये की रिकवरी के सचित्र होर्डिंग लगाए जाने का तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की पीठ ने स्वत: संज्ञान लिया था। कहा, ऐसे होर्डिंग लगाना न सिर्फ तानाशाही और अन्यायपूर्ण है, बल्कि आरोपियों के साथ ही सरकार के लिए भी अपमानजनक है। इन्हें तत्काल हटाया जाए।
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