जन्मभूमि पर 22 जनवरी को प्राण-प्रतिष्ठा के मौके पर रामलला की मुक्ति के लिए जीवन पर्यंत संघर्ष करने वाले इकलौते मित्र जस्टिस देवकीनंदन अग्रवाल की याद आयोजकों को आई है। जन्मभूमि की मुक्ति के लिए रामलला विराजमान के सखा के रूप में मुकदमा दाखिल करने वाले न्यायमूर्ति देवकी नंदन अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन बर्मिंघम में रहने वाली उनकी पुत्री डॉ. मीनू अग्रवाल अपनी पुत्री के साथ अयोध्या के समारोह में विशिष्ट मेहमान बनकर आएंगी।
विहिप के महामंत्री चंपत राय ने डॉ. मीनू अग्रवाल को न्योता भेजने के बाद फोन पर बात कर प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव में शामिल होने की खुशखबरी दी। इसके बाद मीनू के घर में उनके रिश्तेदारों और भारतीय मूल के परिचितों की ओर से बधाई देने का सिलसिला शुरू हो गया है। बर्मिंघम के सटरन कोर्ट फील्ड स्थित उनके घर में उत्सव का माहौल है। रामलला विराजमान की ओर से जन्मभूमि की मुक्ति के लिए उनके पिता ने आजीवन मुकदमा लड़ा था। अब जब गर्भगृह में रामलला के बालरूप की प्राण-प्रतिष्ठा का शुभ दिन तय हो गया है, तब उनकी खुशी का ठिकाना नहीं है।
20 जनवरी को पहुंचेगी फ्लाइट
78 वर्षीया मीनू ने बताया कि कोरोना काल के बाद से ही तबीयत ठीक नहीं रह रही है, लेकिन इस खुशी के मौके पर कई गुना ताकत बढ़ गई है। कदम रुक नहीं रहे हैं। वह अपनी बेटी अनुराग के साथ अयोध्या आएंगी। 20 जनवरी को उनकी फ्लाइट दिल्ली पहुंचेगी। वहां से वह सबसे पहले अपने भाई विभव अग्रवाल के घर जाएंगी। वहां से 21 को वह अयोध्या टैक्सी से जाएंगी। वहां मंदिर के पास ही अरविंदो आश्रम में उनके रहने का इंतजाम किया गया है। डॉ. मीनू 1965 में शादी होने के बाद से ही बर्मिंघम में रह रही हैं।
न्यायमूर्ति देवकी नंदन अग्रवाल राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन के इतिहास के उन अमर नायकों में शामिल हैं, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। विहिप नेता राजीव मिश्रा बताते हैं कि न्यायमूर्ति देवकीनंदन की कोशिशों से ही अदालत में फैसला मंदिर के पक्ष में आया और राममंदिर के लिए भूमि अधिग्रहण का भी मार्ग प्रशस्त हो सका था।
मुकदमे की पैरवी के समय हमेशा न्यायमूर्ति देवकीनंदन के साथ जाने वाले उनके भांजे डॉ. सिद्धार्थ बताते हैं कि मंदिर को लेकर फैजाबाद के सिविल कोर्ट में चल रहे मुकदमे में सबसे बड़ी दिक्कत थी कि मंदिर का पक्ष रखने वाला कोई नहीं था। जो पक्षकार मुकदमा लड़ रहे थे, उनका सीधे मंदिर से कोई जुड़ाव नहीं बनता था। ऐसे में सखा के रूप में जस्टिस देवकीनंदन को इस मुकदमे का पक्षकार बनाया गया था और वह आजीवन इसके लिए लड़ते रहे।
तो ऐसे देवकी नंदन बने थे रामलला के सखा
विहिप नेता राजीव मिश्र बताते हैं कि प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति को सिविल कानून में जीवित व्यक्ति के समान दर्जा प्राप्त है। चूंकि, रामलला ईश्वर हैं, इसलिए उनकी मृत्यु नहीं हो सकती। मुकदमा दाखिल करते समय काफी मंथन किया गया था। तब इस बारे में विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अशोक सिंहल से भी वार्ता हुई। उनकी सहमति मिलने के बाद उन्होंने एक जुलाई 1989 को लखनऊ खंडपीठ ने रामलला विराजमान को पक्षकार बनाने के लिए याचिका दाखिल की।
याचिका तो स्वीकार कर ली गई, लेकिन चूंकि रामलला विराजमान बाल रूप में हैं। इसलिए भगवान को नाबालिग मानते हुए उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी सखा को खड़ा करने की कानूनी सलाह दी गई। इस पर न्यायमूर्ति देवकीनंदन ने खुद को रामलला के सखा के रूप में प्रस्तुत करते हुए सिविल सूट नंबर दाखिल किया था।
subscribe to rss
811,6 followers
6958,56 fans
6954,55 subscribers
896,7 subscribers
6321,56 followers
9625.56 followers
741,9 followers
3548,7 followers