प्रयागराज हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला के प्रथम सत्र में बोलते हुए हिन्दी विभाग, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कमलानन्द झा ने कहा कि भक्ति साहित्य में कई चुप्पियां भी हैं उन पर भी चर्चा की आवश्यकता है। अलवार और नयनारों का उत्तर तक आते-आते सगुण निर्गुण में विभक्त हो जाना, और राज्याश्रय के सहयोग से चलने वाले धर्मस्थानों के प्रश्न को उठाते हुए उन्होंने कहा के इन सब पर भी विचार और इनके पुनर्पाठ की आवश्यकता है।
व्याख्यानमाला के दूसरे सत्र में बोलते हुए पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग, मेघालय के हिन्दी विभाग के प्रोफेसर भरत प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि भारत भूमि का 8 प्रतिशत पूर्वोत्तर भारत है, वहां 400 समुदाय हैं, 220 जनजातीय भाषाएं हैं, 44 नदियां हैं और विपुल साहित्य और लोक साहित्य की परम्परा भी है। उनका भी संज्ञान और संदर्भ लेने की आवश्यकता है, बिना उनके भाषा और ज्ञान का अखिल भारतीय पूर्णस्वरूप नहीं खड़ा हो पाएगा।
कार्यक्रम का संचालन व्याख्यानमाला के संयोजक डॉ. राजेश कुमार गर्ग ने किया। उन्होंने कहा कि समन्वय की विराट चेष्ठा ही वह मध्य मार्ग है जिसकी सहायता से यह देश, समाज और संस्कृति निरन्तर उर्ध्वगामी हो सकती है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता विभागाध्यक्ष प्रो. कृपाशंकर पाण्डेय जी ने की, धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी विभाग के डॉ. लक्ष्मण प्रसाद गुप्त जी ने किया।
कार्यक्रम में देश के 25 राज्यों सहित नेपाल आदि देशों से कुल 435 नामांकन निवेदन प्राप्त हुए। उनमें 156 प्राध्यापक, 111 शोधछात्र, 168 छात्र शामिल हैं। इनमें कुल 279 पुरुष और 156 महिलाएं शामिल हैं।
subscribe to rss
811,6 followers
6958,56 fans
6954,55 subscribers
896,7 subscribers
6321,56 followers
9625.56 followers
741,9 followers
3548,7 followers