500 वर्षों तक चले संघर्ष के बाद निर्मित भव्य महल में मना रामलला का पहला जन्मोत्सव अद्भुत, अकल्पनीय और अविस्मरणीय रहा। रत्न जड़ित पीतांबरी यानी पीला वस्त्र व सोने का मुकुट धारण कर रामलला ने भक्तों को दर्शन दिए। अध्यात्म व विज्ञान का अद्भुत संगम भी उस समय नजर आया, जब सूर्य की किरणों ने पांच मिनट तक सूर्यवंश के सूर्य का ''सूर्य तिलक'' किया। इस अद्भुत क्षण को हर कोई अपनी आंखों में बसाने को लालायित नजर आया। वहीं, कार्यक्रम का प्रसारण न्यूज चैनलों के माध्यम से किया गया, जिससे घर बैठे करोड़ों लोग इस अद्भुत क्षण के साक्षी बने।
भजन-कीर्तन, स्तुति-वंदना के बीच सबकी निगाहें घड़ी की सुइयों पर थीं। जैसे-जैसे घड़ी की सुइयां 12 की ओर बढ़ रही थीं, आतुरता भी बढ़ती रही। बालक राम सहित उत्सव मूर्ति की मनमोहक छवि के दर्शनकर भक्त मंत्रमुग्ध होते रहे। ...नवमी तिथि मधुमास पुनीता, सुकुलपछ अभिजित हरिप्रीता। मध्य दिवस अति सीत न धामा, पावन काल लोक विश्रामा। स्तुति तक पहुंचते-पहुंचते पूरे 12 बज चुके थे।
मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने मंदिर के कपाट खोले तो घंटा घड़ियाल बजने के साथ ही भक्तों ने भए प्रकट कृपाला दीनदयाला, कौशल्या हितकारी... का भजन गायन शुरू कर दिया। जैसे ही जन्मोत्सव का कर्मकांड हुआ पूरा परिसर जय श्रीराम के उद्घोष से गूंज उठा। भक्त उत्साह की सीमाओं का उल्लंघन करने से भी नहीं चूके। मंदिर परिसर में मौजूद हर शख्स भावविभोर दिखा। संत एमबीदास व अन्य कलाकारों ने बधाइयां गाईं तो भक्त झूमने-नाचने लगे।
पुजारी प्रेमचंद्र त्रिपाठी ने बताया कि सुबह 3:30 बजे ही मंदिर के कपाट खोल दिए गए थे। रामलला का श्रृंगार, राग-भोग, आरती व दर्शन साथ-साथ चलता रहा। सुबह से ही मंदिर में अनुष्ठानों का दौर शुरू हो गया था। चारों वेदों का पाठ, वाल्मीकि रामायण का पाठ सहित अन्य अनुष्ठान हुए। रामलला के सूर्य तिलक के समय श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास, महासचिव चंपत राय, ट्रस्टी डॉ़ अनिल मिश्र, ट्रस्टी महंत दिनेंद्र दास, सीबीआरआई रुड़की के निदेशक प्रो़ प्रदीप कुमार सहित अन्य विज्ञानी व साधु-संत मौजूद रहे।
इस तरह हुआ रामलला का पूजन-श्रृंगार - सुबह 3:00 बजे- मधुपर्क, पंचामृत, दिव्य औषधियों से रामलला को स्नान कराया गया। - सुबह 3:30 बजे- श्रृंगार व मंगलाआरती के साथ मंदिर खोला गया। - सुबह 11:08 बजे- जन्मोत्सव को लेकर पूजन की प्रक्रिया शुरू हुई। - 11:40 से 11:55- श्रीरामलला को 56 भोग अर्पित किया गया। - 12:00 बजे- जन्म की आरती शुरू हुई, गर्भगृह का पर्दा खोला गया। - 12:00 बजे- सूर्य की किरणों ने रामलला का सूर्य तिलक किया। - 12:08 बजे- जन्म की स्तुति का गायन शुरू हुआ। - 12:16 बजे- वेदमंत्रों से रामलला की पुन: स्तुति की गई। - 12:30 बजे- दर्शनार्थियों को निकास मार्ग पर जन्म का प्रसाद बांटा गया
पांच चरणों में हुआ रामलला का सूर्य तिलक - मंदिर के ऊपरी हिस्से पर लगे दर्पण पर सूर्य की किरणें गिरीं। यहां से परावर्तित होकर पीतल के पाइप में पहुंचीं। - पाइप में एक और दर्पण लगाया गया था। इससे किरणें टकराकर 90 डिग्री कोण में बदल गईं। - लंबवत पीतल के पाइप में लगे तीन लेंसों से किरणें आगे बढ़ीं। - किरणें तीन लेंस से गुजरने के बाद गर्भगृह में लगे दर्पण से टकराईं। - यहां से 90 डिग्री का कोण बनाकर 75 मिलीमीटर टीके के रूप में रामलला के ललाट पर पहुंचीं।
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